*धर्म क्या है?*
इसका सहज उत्तर है- *धारयति इति धर्म:!* अर्थात जिसे आप जीवन ( आचरण ) में धारण करते हैं वही धर्म है। अब यदि कोई जीवन में धर्म परायण बनना चाहे तो सर्वश्रेष्ठ मार्ग कौन सा है?
तो इसका सर्वश्रेष्ठ उत्तर यही है कि व्यक्ति अपने जीवन में *प्रभु श्रीराम जी के आचरण को ले आये।* जो जो उन्होंने किया, उसका अनुकरण करे। वही आचरण व्यक्ति को धर्म परायण, धर्म रक्षक और धार्मिक बनायेगा!
श्रीरामचंद्र जी ने अपने जीवन में वचन दिया तो निभाया। ना सिर्फ अपने वचन का पालन किया अपितु अपने पिता के दिए वचन को भी निभाने के लिए 14 वर्ष का वनवास ( बिना किसी किंतु परंतु किए ) भोगने निकल पड़े।
उन्होंने सदैव अपने गुरु का सम्मान किया। उनकी रक्षा के लिए शस्त्र उठाए। श्रीरामचंद्र जी ने राजा और रंक का भेद किए बिना ही सबको उचित सम्मान दिया। उन्होंने शबरी के बेर भी खाए और अपने बचपन के मित्र निषाद राज के साथ आजीवन मित्रता निभाई। वे न्याय को अपना धर्म समझ कर बिना किसी क्षणिक लाभ या हानि की चिन्ता के सदैव अन्यायी के विरुद्ध खड़े हुए.
श्रीराम जी के पास सहयोग लेने के लिए बालि या सुग्रीव दोनो का विकल्प था। बालि स्वयं महायोद्धा थे, राजा थे, उनके पास किष्किंधा की सेना भी थी। यही नहीं, बालि ने रावण को परास्त भी किया था। उन्हे अपना सहयोगी बनाना विजय को आसान बना देता। परंतु श्रीराम ने बालि के अधर्मी आचरण ( अपने अनुज की पत्नी को बलात अपने रनिवास में रखने ) के कारण उसका वध किया और सुग्रीव को न्याय दिलाया।
वे आजीवन एक पत्नीव्रता रहे। अपनी पत्नी की रक्षा के लिए लंका तक सेतु बंधवा कर रावण के पूरे कुटुंब की लंका लगा दी, पर युद्ध जीतने के बाद किसी भी लंका निवासी को न लूटा ना ही प्रताड़ित किया। ना ही लंका की स्त्रियों को "माले गनीमत" समझा।
उन्होंने जीवन पर्यंत स्त्री का सम्मान किया। चाहे वो वनवास दिलाने वाली सौतेली मां हो, या लंकाधिपति के राज्य की स्त्रियां हों, उन्होंने किसी के प्रति असम्मान नहीं दिखाया। माता सीता के सम्मान की रक्षा के लिए सोने की लंका जला दी गई पर सोना लूट कर अयोध्या नही लाए, ना ही लंका को अपने राज्य में मिलाया। विभीषण को लंका का राजा बना कर राज उन्हे सौंप दिया। अपना "वचन" निभाया।
वे सदैव सत्य के साथ खड़े हुए। मर्यादा पुरुषोत्तम अवतार में प्रभु श्रीरामचंद्र जी ने सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के पालन का उच्चतम मानक स्थापित किया।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद ( अहंकार ), ईर्ष्या, अशौच और निंदा का त्याग धर्म है। दान, ज्ञानार्जन, दया, सहिष्णुता, सत्कर्म, सम्मान, और सेवा धर्म है। और इसकी सबसे अच्छी शिक्षा भगवान श्रीराम देते हैं।
Naresh Sharma "Pachauri"
03-Jun-2024 07:40 PM
अति सुन्दर
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RISHITA
03-Jun-2024 06:28 PM
V nice
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